Home सियासत अब आर-पार की कवायद में बनेगा ‘तीसरा मोर्चा’, जिसे कहीं ठौर नहीं, उसका बनेगा ठिकाना

अब आर-पार की कवायद में बनेगा ‘तीसरा मोर्चा’, जिसे कहीं ठौर नहीं, उसका बनेगा ठिकाना

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पटना । बिहार विधानसभा चुनाव में ‘तीसरा मोर्चा’ का रंग-रूप क्या होगा, इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। यह तय है कि चुनाव में इस बार भी दो चेहरे होंगे। एक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का और दूसरा प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का। तस्वीर साफ है, चुनाव में राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच ही लड़ाई होगी। अब बात यह कि दोनों गठबंधनों में जिन दलों को भाव नहीं मिलेगा, उन्‍हें अपनी साख बचाने के लिए ‘तीसरा मोर्चा’ में ठौर तलाशनी ही होगी।

चिराग दिखा रहे तेवर, पप्‍पू यादव सक्रिय

तस्वीर का एक पहलू यह है कि एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख चिराग पासवान रह-रह कर सीट शेयरिंग को लेकर जो तेवर दिखा रहे हैं, उससे ‘तीसरा मोर्चा’ का ख्वाब पाल रहे नेताओं को ऑक्सीजन मिल रहा है। पूर्व सांसद पप्पू यादव अपनी जन अधिकार पार्टी के राष्‍ट्रीय जनता दल, या यूं कहें कि महागठबंधन से तालमेल की उम्मीद में हैं। लेकिन बात नहीं बनी तो ‘तीसरा मोर्चा’ के गठन में भी कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहेंगे। ऐसे में पप्पू यादव सीमांचल में सक्रिय असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को ‘तीसरा मोर्चा’ से जोडऩे में पीछे नहीं रहेंगे।

मंझधार में छूटे तो मांझी को भी उम्‍मीद

दूसरा पहलू यह है कि कई मुद्दों पर अभी महागठबंधन में खटपट की स्थिति है। इसे पाटने की कोशिश भी जारी है। हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष व पूर्व सीएम जीतन राम मांझी दुविधा में हैं और दो नाव की सवारी करते दिख रहे हैं। यदि मंझधार में दोनों नाव छूट गए या तो ‘तीसरा मोर्चा’ ही सहारा होगा।

वाम दलों में संशय व बेचैनी की स्थिति

अभी तक महागठबंधन की ओर से भाव नहीं मिलने से वामपंथी दलों में बेचैनी है। संशय जैसी स्थिति है, लेकिन भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी , मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और भाकपा माले द्वारा चुनावी तैयारियां बूथ स्तर पर हो रही हैं। इनके नेताओं का स्पष्ट कहना है कि राजनीति संभावनाओं से जुड़ा है। महागठबंधन में सम्मानजनक बात नहीं बनेगी तब एनडीए को हराने हेतु किसी भी हद तक जाएंगे। यानी, ‘तीसरा मोर्चा’ से परहेज नहीं। इससे वामपंथी दल जुडेंगे, लड़ेंगे।

यशवंत सिन्हा भी कर रहे कोशिश

इधर राजनीति में हाशिए पर जा चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा भी उन छोटे छोटे दलों को एकजुट कर ‘तीसरा मोर्चा’ बनाने की कोशिश में जुटे हैं, जिन्हें एनडीए और महागठबंधन में ठौर-ठिकाना नहीं मिल रहा है। तीसरे मोर्चे में राज्य के कई और छोटे दल शामिल हो सकते हैं। पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, देवेंद्र प्रसाद यादव, नागमणि, पूर्व सांसद अरुण कुमार जैसे नेता भी मोर्चे का हिस्सा होंगे। राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को इस मोर्चे का हिस्सा बनाया जा सकता है।

महागठबंधन व एनडीए का विकल्प बनने की कवायद

दरअसल, यह एनडीए और महागठबंधन से नाराज नेताओं को एक साथ लाने की कोशिश है। तीसरा मोर्चा छोटे दलों के साथ मिलकर एक सिंबल पर चुनाव लडऩे की योजना बना रहा है, लेकिन एक सिंबल पर सब एकमत हो पाएंगे, इसकी गुंजाइश कम ही है। फिर भी मोर्चा बनाने में जुटे नेताओं का कहना है कि वे महागठबंधन और एनडीए का विकल्प बनेंगे।

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