
झारखंड में टंगस्टन के भंडार मिले हैं। गलनांक क्षमता काफी उच्च होने के कारण तोप और मिसाइल से लेकर दूसरे रक्षा उपकरणों एवं एयरक्राफ्ट के निर्माण में इसका उपयोग होता है। गढ़वा जिले के सलतुआ इलाके में जमीन के नीचे इसकी पुष्टि हुई है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण (जीएसआई) ने यह जानकारी केंद्र सरकार को भेजी है।
भारत सरकार की हरी झंडी मिलते ही इसके भंडार की मात्रा के आकलन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। भूतत्वेत्ताओं को यहां बड़ा भंडार मिलने की उम्मीद है। झारखंड में यह टंगस्टन की पहली खान होगी। देश में यह दूसरी खान होगी। पहली खान राजस्थान के नागौर जिले के रैवत नामक स्थान पर है। हालांकि, वहां सालों से टंगस्टन के खनन का काम बंद है। इसलिए झारखंड में टंगस्टन की माइनिंग शुरू होने से रक्षा उपकरणों के निर्माण की महत्वपूर्ण सामग्री देश में ही उपलब्ध होनी शुरू हो जाएगी।
झारखंड में लग सकते हैं टंगस्टन आधारित उद्योग
भारत में अभी जरूरत के टंगस्टन का सौ फीसदी आयात होता है। उसके लिए भारत चीन पर निर्भर है। चीन से तनाव के मद्देनजर इस आपूर्ति पर असर पड़ सकता है। ऐसे में भारत के रक्षा उद्योग को झटके से बचाने के लिए झारखंड की टंगस्टन खान राहत दे सकती है। जमशेदपुर का राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला टंगस्टन को प्रसंस्कृत कर उसे उपयोग में लाने की तकनीक पहले ही विकसित कर चुका है। खान और प्रसंस्करण प्रयोगशाला दोनों के झारखंड में मौजूद होने के कारण प्रदेश में टंगस्टन आधारित उद्योगों की संभावना पैदा हो सकती है। खासकर रक्षा उद्योग, एयरक्राफ्ट उद्योग तथा इलेक्ट्रोनिक एवं इलेक्ट्रिक उपकरणों के निर्माण की इकाइयां यहां स्थापित हो सकती हैं। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल सकता है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था का नया चक्र भी विकसित हो सकता है।
बनते हैं कठोर, टिकाऊ और न घिसने वाले उपकरण
टंगस्टन का गलनांक काफी उच्च होता है। यानी इससे बने पुर्जे काफी उच्च ताप पर पिघलते हैं। इस कारण बल्ब के तंतुओं(फिलामेंट्स) के निर्माण में इनका उपयोग होता था। एलईडी बल्बों के आने के बाद टंगस्टन का यह उपयोग बंद हो चुका है। परंतु इंजीनियरिंग उद्योगों में अनिवार्य सामग्री के रूप में इसका उपयोग होता है। दूसरी धातुओं में मिलाने पर उनकी कठोरता बढ़ जाती है। इस कारण टंगस्टन का उपयोग काटने के औजार, शल्यचिकित्सा के यंत्र आदि के मिश्रधातुओं में होता है। इन मिश्रधातुओं पर अम्ल, क्षार आदि का भी असर नहीं होता है। एक्सरे उपकरण, थर्मायनिक वल्ब और बिजली के जोड़ आदि में भी टंगस्टन का उपयोग होता है। टंगस्टन मिश्रित इस्पात से बने उपकरण बहुत कठोर, टिकाऊ तथा न घिसनेवाले होते हैं। इस कारण रक्षा और वैमानिकी उद्योग के उत्पादन का यह अनिवार्य अंग है।