पटना । चुनाव आयोग की सक्रियता के साथ ही बिहार में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। राजनीतिक दल कोरोना के साथ जीने के तरीकों के सहारे सुरक्षित घेरे से निकलने लगे हैं। करीब पांच साल पहले नौ सितंबर 2015 को चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी थी। उस हिसाब से चुनाव की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दल अब समय की गणना महीनों में नहीं, बल्कि दिनों में करने लगे हैं।
वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर तक है। किंतु प्रक्रिया के जल्द शुरू होने के आसार को देखते हुए कोरोना के खतरे के बावजूद बिहार की सियासी गतिविधियों में एकबारगी उछाल आ गया है। वर्चुअल रैलियों का सिलसिला सात जून से शुरू होने वाला है। तकरीबन सभी दलों ने बूथ और पंचायत स्तर पर संपर्क अभियान तो पहले ही शुरू कर दिया है। चुनावी मुद्दे तय होने लगे हैं। टिकट के दावेदार सक्रिय हो गए हैं।
पिछली बार पांच चरणों में पड़े थे वोट
बिहार में पिछली बार विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पांच चरणों में पूरी की गई थी। चुनाव आयोग ने नौ सितंबर को ही मतदान की चरणवार तारीखों का एलान कर दिया था। हालांकि, अधिसूचना जारी होने से पहले ही राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां कर ली थीं। गठबंधन का काम अगस्त के पहले हफ्ते में ही कर लिया गया था। पहले चरण का मतदान 12 अक्टूबर को हुआ था। अंतिम चरण के वोट पांच नंवबर को पड़े थे। मतों की गिनती आठ नवंबर को हुई थी। महागठबंधन के मुखिया नीतीश कुमार ने 20 नवंबर को गांधी मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
इस बार अलग हैं गठबंधन के स्वरूप
पिछले बार गठबंधन के स्वरूप के साथ-साथ चुनाव के मुद्दे भी अलग थे। भारतीय जनता पार्टी के साथ वर्षों से तालमेल करके चुनाव लड़ते आ रहे जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। बीजेपी के साथ रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) एवं जीतनराम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का गठबंधन था। इस बार महागठबंधन बिखर गया है। बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी का मुकाबला आरजेडी से होगा।