जमशेदपुर । झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास, टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन, टाटा स्टील के सीईओ और प्रबंध निदेशक टी वी नरेंद्रन ने रविवार को उसके संस्थापक जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा की 180वीं जयंती पर यहां उन्हें श्रद्धांजलि दी। चंद्रशेखरन और नरेंद्रन ने भारतीय उद्योगों के प्रतिष्ठित सदस्य को पुष्पांजलि अर्पित की।
टाटा समूह की कंपनियों के वरिष्ठ कार्यकारियों ने भी इस मौके पर संस्थापक को श्रद्धांजलि दी। दास ने जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा को श्रद्धांजलि दी और जमशेदपुर शहर के 100 साल पूरे होने पर लोगों को बधाई दी।

देश में बड़ा औद्योगिक साम्राज्य खड़ा करने वाले जमशेदजी टाटा ने अपने पारिवारिक कारोबार से अलग हटकर कुछ करने की सोची थी. उन्होंने मुंबई की एक तेल मिल खरीदी, जिसे कपड़ा मिल में बदल दिया. इसके बाद वो उद्योग साम्राज्य में आगे बढ़ते ही चले गए. पढाई में वो काफी प्रतिभाशाली थे.
जमशेदजी टाटा ने टाटा ग्रुप की स्थापना की थी. 3 मार्च 1839 को गुजरात के नवसारी में जन्मे टाटा ने ही देश में पहली कार खरीदी थी. जमशेदजी ही वह शख्स थे, जिन्होंने भारत को बिजनेस करना सिखाया. यूं तो जमशेदजी के बारे में बहुत कहा जाता है. यहां पढ़ें कैसे हुई थी टाटा ग्रुप की शुरुआत

हो सकता है यह जानकार हैरत हो कि टाटा फैमिली शुरुआत में अफीम का कानूनी कारोबार किया करती थी. जो भारत से विदेशों में जाता था. जमशेद इस परिवार के ऐसे शख्स थे, जिन्होंने फैमिली को इस कारोबार से निकालकर एक बड़े बिजनेस एम्पायर में बदला. आगे चलकर टाटा फैमिली की हैसियत इतनी हो गई कि वह सरकार को भी लोन दे सकती थी.
टाटा परिवार गुजरात के नौसारी से आता है. 18वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जमशेदजी के पिता नुसरवानजी टाटा वहीं अपना कारोबार किया करते थे. जब अंग्रेजों ने मुंबई शहर को बसाना शुरू किया तो मुनाफा कमाने की फिराक में नुसरवानजी नौसारी से मुंबई आ गए. अंग्रेजों को कारोबारियों की जरूरत थी और नुसरवानजी को कारोबार की. इसके चलते नुसरवानजी ने मुंबई में ठहरने का मन बना लिया. उधर जमेशदजी नौसारी में ही अपनी शुरुआती पढ़ाई कर रहे थे.

नुसरवानजी एक मंझे हुए कारोबारी थे, मुंबई आने से पहले वह गुजरात में अपना ट्रेडिंग का कारोबार फैला चुके थे. यह 1850 का दौर था. पूरी दुनिया में अपना एम्पायर खड़ा करने के लिए पश्चिमी देश भयानक मार-काट कर रहे थे. युद्ध में घायल सैनिकों को दर्द से निजात दिलाने के लिए सबसे बेहतर ऑप्शन अफीम हुआ करती थी.
जमशेदजी नवसारी में शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद 13 साल की उम्र में मुंबई आ गए. 17 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई के ‘एलफिंसटन कॉलेज’ में दाखिला लिया. यहां उन्होंने टॉपर के तौर पर डिग्री पूरी की. इसके बाद वह पिता के व्यवसाय में लग गए.

जमशेदजी टाटा ने इसके बाद शुरुआत में पिता के कारोबार में हाथ बढ़ाया और 29 साल की उम्र में अपनी कंपनी शुरू की. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जमशेदजी को शुरुआती कारोबार में असफलता मिली. इस बीच वो ब्रिटेन गए, जहां उन्हें उन्हें कॉटन मिल की क्षमता का अंदाजा हुआ. भारत वापस आने के बाद जमशेदजी ने एक तेल मिल खरीदी. उसे कॉटन मिल में तब्दील कर दिया.जब वह मिल चल निकली तो जमशेदजी ने उसे भारी मुनाफे में बेच दिया.
जमशेदजी ने कॉटन के कारोबार की संभावनाओं को पहचान लिया था. इसलिए मिल से मिले पैसों से उन्होंने 1874 में नागपुर में एक कॉटन मिल खोली. यह बिजनेस भी चल निकाला. जिसका नाम बाद में ‘इम्प्रेस्स मिल’ कर दिया गया.

इसके बाद जमशेदजी ने 4 बड़ी परियोजनाएं लगाईं. इनमें थी एक स्टील कंपनी, एक वर्ल्ड क्लास होटल, एजुकेशनल इंस्टीट्यूट और एक जलविद्युत परियोजना. इनके पीछे जमशेदजी की भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनाने की सोच थी. हालांकि उनकी जिंदगी में सिर्फ एक ही परियोजना पूरी हो सकी, होटल ताज. जो एक वर्ल्ड क्लास होटल था. बाद में उनके सपने को टाटा की आने वाली पीढ़ियों ने पूरा किया. इन्हीं 4 परियोजनाओं के चलते टाटा ग्रुप की भारत कारोबारी हैसियत बनी. उनकी इन्हीं सफलताओं ने पहली बार भारत औद्योगिक तौर पर आत्मनिर्भर बनने का सपना भी दिया.