पटना। बिहार के प्रखंड क्वारंटाइन सेंटर मॉडल की चर्चा देश के स्तर पर हो रही है। केंद्र सरकार भी इस अवधारणा की प्रशंसा कर रही है। बिहार सरकार ने इन क्वारंटाइन सेंटरों को एक रणनीति के तहत बनाया, ताकि दूसरे राज्यों से आ रहे प्रवासी मजदूरों को यहीं पर रखा जा सके। इसका मुख्य मकसद था कि कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकना।
हालिया कोरोना जांच रिपोर्ट भी बताती है कि क्वारंटाइन सेंटर की अवधारणा पूरी तरह सफल रही है। क्योंकि पिछले चार-पांच दिनों में कोरोना पॉजिटिव मामले का ग्राफ बिहार में ऊपर गया है। यह प्रवासी मजदूरों के कारण ही हुआ है। आलम यह है कि तीन मई के बाद दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूरों में अब-तक 277 पॉजिटिव मिले हैं। इन लोगों की रैंडम जांच कराई गई है। अगर, ये सभी क्वारंटाइन सेंटर में न रहकर सीधे अपने-अपने गांव चले गए होते तो स्थिति काफी गंभीर हो सकती थी।
राज्य सरकार कोरोना संक्रमण की शुरुआती आहट के समय से ही सतर्क है। शुरुआती चरण में राज्य में संक्रमितों की संख्या कम थी। हालांकि उन पहले के आंकड़ों से भी पता चलता है कि देश के बाहर से और दूसरे राज्यों से आए लोगों तथा उनके संपर्क वाले ही संक्रमित मिले। तीन मई के बाद दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर आने लगे। इन सभी को प्रखंड स्तरीय अथवा अपग्रेड पंचायत क्वारंटाइन सेंटरों में रखा गया है। इन सेंटरों पर भी इनकी सुविधाओं का पूरा ख्याल रखते हुए सभी आवश्यक इंतजाम किए गए हैं। यहां भोजन, आवासन एवं चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं।
राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण से उत्पन्न स्थिति को आपदा मानते हुए इन सेंटरों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन के साथ-साथ मच्छरदानी, मॉस्किटो क्वायल, दरी, बिछावन, कपड़े, बर्तन की व्यवस्था की है। जिन प्रवासी मजदूरों को बिहार लाया जा रहा है, उनकी सघन स्क्र्रींनग के बाद ही क्वारंटाइन सेंटर पर रखा जा रहा है। कोरोना संक्रमण की चेन की आशंका को देखते हुए प्रखंड स्तर पर ऐसे सेंटर बनाए गए हैं। संदिग्ध के सैंपल की जांच की जा रही है। पॉजिटव पाए गए लोगों को अलग अस्पतालों तथा आइसोलेशन सेंटर पर रखने की व्यवस्था है।