पटना। लॉकडाउन के डेढ़ महीने हो गये हैं। कामकाज बंद है। ऐसे में रोजी-रोटी को लेकर को लेकर चिंता सताने लगी है। किसी तरह एक टाइम का खाना खा पा रहे हैं। दिनभर मोहल्ले और गलियों व सड़कों पर घूमता रहता हूं, लेकिन कोई हमसें काम नहीं करा रहा है। लोग काम तो देते नहीं है उपर से दुत्कार के भगा देते हैं। पता नहीं इस महामारी में परिवार का गुजारा कैसे होगा। घर में छह लोग हैं, लॉकडाउन की वजह से सभी का कामकाज बंद हैं। मैनें सोचा पुरानी कुर्सियों की मरम्मत करने के बाद कुछ पैसे आएंगे तो पूरे परिवार के पेट की आग बुझेगी। जिस झोपड़ी में रहता हूं उसका किराया भी देना है। लगता कोरोना नहीं तो भूख से ही मर जायेंगे इस संकट की घड़ी में दो हजार रुपये का कर्ज भी हो गया है। समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा कब तक चलेगा। ये कहते-कहते कुर्सियों की मरम्मत करनेवाले सागर की आंखे भर आईं।
लॉकडाउन के कारण हमारा काम ही चौपट हो गया है। जब लोग हमारे बनाया हुआ सामान नहीं खरीदेंगे तो हमलोग अब कैसे जीयेंगे। अब सभी को महामारी का खतरा कम होने का इंतजार है ।
-रामदास, अंटा घाट दलित बस्ती
घूम-घूम कर सामान बेचने पर पुलिस तो परेशान करती हीं है और हमारा सामान भी नहीं बिक रहा है। मजबूरन ये पुश्तैनी काम बंद करना पड़ा है। पहले जहां ये सब सामान बेचकर दिन भर में 200 से 300 रुपये कमा लेते थे अब 50 रुपये भी आफत हो गई है। समाजसेवी लोग खाने का पैकेट दे जाते हैं। उसी में परिवार के सभी लोग थोड़ा-थोड़ा खाने के बाद पानी पीकर सो जाते हैं।
-अमर, महेंद्रूघाट दलित बस्ती