पटना। कोटा में बिहार के डेढ़ लाख से अधिक छात्र-छात्राएं मेडिकल-इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं। जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो बहुत से छात्रों के माता-पिता निजी वाहनों से अपने बच्चों को वहां से वापस ले आए थे। लॉकडाउन-2 शुरू होते-होते अधिकांश छात्र-छात्राएं अपने-अपने घरों तक पहुंच गए थे। इसके बावजूद ऐसे छात्र-छात्राओं की संख्या काफी थी जो अपने घर नहीं पहुंच पाए। पिछले डेढ़ माह से कोचिंग क्लास बंद रहने के कारण ये छात्र-छात्राएं अपने-अपने कमरे में ही एक तरह से बंद थे। डिप्रेशन की स्थिति में आ गए थे। कोटा से विशेष ट्रेन से दानापुर स्टेशन पर उतरने वाले कई छात्र-छात्राओं ने कुछ ऐसे ही अनुभव साझा किए।
अवसाद ग्रस्त होने लगे थे छात्र
विशेष ट्रेन से उतरे कंकड़बाग निवासी छात्र प्रियांक और शालिनी मिश्रा, बोरिंग रोड निवासी सुप्रिया, रचना व पटना सिटी के रहने वाले रमन, दीप्ति, अंकिता व रानू ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान कहीं -कहीं तो एक-एक हॉस्टल में मुश्किल से दो-तीन स्टूडेंट ही बचे रह गए थे। ऐसे में रात तो रात दिन में भी इतना सन्नाटा पसरा रहता था कि हॉस्टल के सामने की दुकान तक जाने में डर लगता था। एक ही कमरे में डेढ़ माह से रहने के कारण छात्र- छात्राएं डिप्रेशन की स्थिति में आने लगे थे। हालांकि ऐसी परिस्थिति में मकान मालिकों ने काफी सहयोग किया फिर भी भोजन का संकट बरकरार था। खाने में पोहा अथवा चूड़ा-दूध खाकर काम चलाते थे। रात में अक्सर दूध पीकर ही रह जाते थे। उन्होंने बताया कि कोटा से दानापुर के सफर के लिए रेल भाड़ा अथवा भोजन का पैसा नहीं लिया गया था।
आवाज की जगह निकलने लगी आसुओं की धारा
जब उनसे बस पर बैठने के बाद पूछा गया कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं तो उनके मुंह से आवाज नहीं आंसुओं की धारा बह निकली। बस में अपने बगल में बैठे दूसरे छात्र की ओर इशारा करते हुए रचना ने कहा कि एक सप्ताह और घर नहीं आते तो सन्नाटे के कारण अधिकांश छात्र डिप्रेशन में चले जाते। करण तो डिप्रेशन में चला भी गया था। उसके माता-पिता लगातार उसे समझाते रहते थे। वह तो फूट-फूटकर रोता था। घर पहुंचने के बाद ऐसा लग रहा है कि अब वे ङ्क्षजदगी की हर परीक्षा में सफल हो जाएंगे। मेडिकल-इंजीनियरिंग की तैयारी से कठिन था कोटा की सन्नाटेदार रातें काटना। रात में जब अपने आप नींद खुल जाती थी और डरावने ख्याल हावी होते थे तो उस वक्त मां को फोन करते थे। फोन पर ही मां हनुमान चालीसा पढ़कर सुनाती थीं। तब काफी हिम्मत मिलती थी।