दो श्रमिक स्पेशल ट्रेन से केरल से झारखंड पहुंचे प्रवासी मजदूरों का कहना है कि उन्हें धनबाद और जसीडीह का किराया लेने के बाद टिकट दिया गया। धनबाद के लिए 860 रुपये तो जसीडीह के लिए 875 रुपये वसूले गए।
स्पेशल ट्रेन में 22 जिलों के 1129 मजदूर सवार थे। कई मजदूरों ने बताया कि उनके पास पैसे खत्म हो गए थे। ऐसे में किसी को घर से पैसे मंगाकर टिकट लेना पड़ी तो किसी ने उधार लेकर टिकट खरीदा।
श्रमिक स्पेशल ट्रेन से केरल प्रांत के तिरुवनंतपुरम से सोमवार को जसीडीह जंक्शन पहुंचे मजदूरों ने बताया कि उन्हें 875 रुपये का टिकट लेना पड़ा। धनबाद लौटे कुछ मजदूरों ने कहा कि सरकार ने ट्रेन चलाकर अच्छा किया। हम लोग सुरक्षित घर लौट आए, लेकिन रेलवे ने 860 रुपये किराया वसूला। टिकट के पैसे नहीं थे, उधार लेकर आना पड़ा।
कमारडीह के छोटू सोरेन ने कहा कि काम छूट गया था। घर आना जरूरी था। मेरे पास पैसे नहीं थे। इसलिए, दोस्त से पैसे लेकर टिकट करवाया। टुंडी के विश्वनाथ ने कहा कि नौकरी चली गई और ठेकेदार ने एक महीने की मजदूरी भी नहीं दी। ऊपर से ट्रेन में भाड़ा देकर आना पड़ा।धनबाद लौटे कई मजदूरों ने बताया कि यात्रा शुरू होने से पहले कमरे पर आकर किराया वसूला गया। पाकुड़ लौट रहे अलामुद्दीन शेख ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान वे कालीकट में फंसे थे। उनके साथ उनके गांव के 40-50 लोग थे।केरल के कालीकट से धनबाद पहुंची श्रमिक स्पेशल ट्रेन से हजारों मजदूर महीनों बाद अपने घर आए। कोरोना वायरस के खतरे के बीच घर पहुंचने से चेहरे पर सुकून दिख रहा था, लेकिन सबके मन में एक ही बात चल रही थी कि अब घर पर रहकर करेंगे क्या, परिवारवालों का खर्च कहां से उठाएंगे। सरायकेला-खरसावां के रहनेवाले मो आरिफ अपने दोस्त उस्बाह हुसैन के साथ धनबाद स्टेशन पहुंचे। हिन्दुस्तान से बातचीत में बताया कि घर आने के नाम पर खुशी तो हो रही है, लेकिन साथ ही साथ चिंता सता रही है कि लॉकडाउन नहीं खुला, तो हम करेंगे क्या। झारखंड में उतनी मजदूरी नहीं मिलती जितना वहां कमा लेते थे। यहां दिनभर काम करने पर 180 रुपए मुश्किल से मिलता है, वहां एक दिन का 500 रुपए मिलते थे। पूरे घर की जिम्मेवारी है। दोनों ही दोस्त वहां कारपेंटर का काम करते थे। लॉकडाउन खुलने के बाद वह फिर से वापस केरल जाएंगे, लेकिन उनलोगों का मालिक फिर से नौकरी देगा या फिर किसी और को काम पर रख लिया होगा, इसकी चिंता अधिक सता रही है।