पटना। आने वाले 7 मई को बिहार विधान परिषद नेतृत्व विहीन हो जाएगी क्योंकि 6 मई को परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष हारून रशीद का 6 साल का कार्यकाल खत्म हो रहा है। बिहार विधान परिषद के 83 साल के इतिहास में यह तीसरा मौका है जब राज्य के ऊपरी सदन का कोई संचालनकर्ता नहीं होगा। कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए 16 मार्च को विधान परिषद को अनिश्चितकाल के स्थगित कर दिया गया था। वैसे सदन की कार्यवाही 4 अप्रैल तक चलनी थी। कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन को देखते हुए चुनाव आयोग ने 07 मई तक होने वाले 17 सीटों के चुनाव को स्थगित कर दिया था।
इस मामले पर पटना हाईकोर्ट के वकील वाईबी गिरी कहते हैं कि सदन की कार्यवाही चल नहीं रही है। ऐसे में सदन का नेता नहीं चुना जा सकता। वहीं संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है, ‘पहले भी बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष का पद दो बार खाली रह चुका है। सदन का अध्यक्ष और स्पीकर होने के लिए आपको सदन का सदस्य होना जरूरी है। हालांकि मुख्यमंत्री और मंत्री बनते समय आपको सदन का सदस्य रहना जरूरी नहीं है लेकिन पदभार ग्रहण करने के छह महीने के भीतर आपको दोनों सदन में से किसी एक में चुना जाना आवश्यक है।’ कश्यप आगे कहते हैं, ‘राशीद पिछल दो साल से परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। कार्यकाल पूरा होने पर उन्हें यह पद छोड़ना होगा। अब चुनाव आयोग पर निर्भर करता है कि वह चुनाव प्रक्रिया को गति दे।’
सरकार के पास मौका भी
विधान परिषद के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार के पास हारून रशीद को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए रखने के लिए एक मौका था, अगर उन्हें दो खाली सीटों में से किसी एक पर फिर से राज्यपाल द्वारा नॉमिनेट कर दिया जाता। लल्लन सिंह और पशुपति कुमार पासवान के लोकसभा जाने के बाद दो सीटें खाली हो गई थीं। इन दोनों सीटों का कार्यकाल 27 मई को खत्म हो रहा है।
राज्यपाल कर सकते हैं नामित
वहीं पटना हाईकोर्ट के वकील वाईबी गिरी कहते हैं कि विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्याक्ष नहीं रहने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। उनका कहना था कि अगर परिषद का कोई डिप्टी चेयरमैन होता तो यह समस्या ही नहीं होती। हारून रशीद खुद कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सेवा दे रहे हैं। एक अधिकारी ने बताया कि आपातकालीन स्थिति में राज्यपाल सदन के किसी सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नामित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सदन का सत्रावसान हो गया होता तो राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश पर फिर से शुरू करना पड़ता। इसके लिए राज्यपाल से इजाजत की आवश्यकता नहीं पड़ती। राज्यपाल से अनुमति की आवश्यकता तब पड़ती है जब सत्रावसान के बाद सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया जाए।
स्थापना के समय भी खाली रहा अध्यक्ष पद
83 साल पहले बिहार विधान परिषद की स्थापना के समय ही 40 दिन तक अध्यक्ष का पद खाली रहा था। इसके बाद 1980 में सात मई से 3 जून तक के लिए परिषद का कोई अध्यक्ष नहीं था। वहीं 1987 में 13 से 17 जनवरी के बीच चार दिन के लिए अध्यक्ष पद खाली रहा था। बिहार विधान परिषद के चार ग्रेजुएट टीचर क्षेत्र की सीट को सात मई तक भरना था। वहीं 12 सदस्यों को 27 मई तक राज्यपाल द्वारा नामित होकर सदन का सदस्य बनना था लेकिन कोरोना लॉकडाउन के कारण सारी प्रक्रिया अभी रुकी हुई है। चुनाव आयोग के आदेश के बाद ही बिहार में एक बार फिर से चुनावी कार्य शुरू होगा।