पटना। ऐसा कहा जाता है कि जब कोई कुछ करने की ठान ले तो कोई बाधा उसके आड़े नहीं आती। कुछ ऐसा कही कर दिखाया है बिहार के दरभंगा जिले में रहने वाले 32 वर्षीय हरिवंश चौधरी ने। जिस वक्त महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना के चलते 21 मार्च को ऑफिस और कल-कारखाने बंद करने का ऐलान किया था उस समह हरिवंश को शायद ही ये पता होगा कि उसे अपने घर तक पहुंचने के लिए 27 दिनों तक लंबी पैदल यात्रा करनी होगी।
दरभंगा जिले के पनचोभ के रहने वाले हरिवंश मुंबई के भयांदर में एक स्टील की फैक्ट्री में खुशी पूर्वक काम कर रहे थे कि अचानक फैक्ट्री मालिक ने उनसे यह कह दिया कि उनकी छुट्टी की जा रही है। उसने जो एडवांस कंपनी से 240 रुपये लिए थे उसके अलावा कंपनी ने एक पैसा भी नहीं दिया।
ऐसे में जीविका के लिए कोई और चारा न देख हरिवंश ने ट्रेन से अपने गांव जाने का फैसला किया। लेकिन, उसके अनारक्षित 445 रुपये की टिकट खरीदने के बाद यह पता चला कि लोकमान्य तिलक टर्मिनस रेलवे स्टेशन से जाने वाली दरभंगा की ट्रेन रद्द हो गई।
रेलवे एन्क्वायरी स्टाफ ने कहा, “पटना जा रही एक ट्रेन को छोड़कर सभी ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है।” परेशान हरिवंश ने फौरन अपने घर पर परिवार वाले से बात की। हरिवंश के पिता कृष्ण चौधरी ने उन्हें सलाह दी कि वे वहीं पर सुरक्षित रहें और बुद्धिमानी भरा वास्तविक फैसला करें।हरिवंश किसी तरह पटना जा रही ट्रेन में चढ़ गए जो 5-6 घंटे की यात्रा के बाद अचानक अपनी आगे की यात्रा को रद्द कर दिया।
हरिवंश की यात्रा के बारे में बताते हुए पनचोभ के मुखिया राजीव कुमार चौधरी ने कहा, उन्होंने पहले ही 500 में से 445 रुपए ट्रेन टिकट खरीदने में खर्च कर लिया था। ऐसे में यह बड़ी बात थी कि पैदल घर तक 1800 किलोमीटर की यात्रा करना।
हरिवंश पैदल ही उत्तर प्रदेश और बिहार जा रहे 25 लोगों के एक समूह में शामिल हो गए, इस बात से अनजान कि कितना लंबा उसे घर जाने के लिए चलना पड़ेगा। हरिवंश ने उस पल को याद करते हुए बताया, मैं रेलवे की पटरियों के साथ रास्ते पर समूह में घंटों चला करते थे और पेड़ की छाया में सो जाते थे। हम अक्सर सुबह साढ़े पांच बजे से लेकर शाम के 8-9 बजे तक थोड़ा-थोड़ विराम लेकर चलते थे।हरिवंश ने कहा “सड़कों पर कोई खाना नहीं था ऐसे में कुछ नागरिक अक्सर खाना के लिए बिस्कुट और पानी दे देते थे। कुछ लोग खाना भी खिलाते थे।”