लखनऊ । कोरोना संक्रमित मरीज में गंभीरता कितनी अधिक होगी, इसका अंदाजा काफी पहले लगाया जा सकता है। गंभीरता को खास कोशिकाओं की संख्या के आधार पर भांपा जा सकेगा। यह खास कोशिकाएं है न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट। यह दोनों कोशिकाएं शरीर के इम्यून सिस्टम में अहम भूमिका निभाती है। विशेषज्ञों ने इस बायोमार्कर को एनएलआर (न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट रेशियो) नाम दिया है। इस जांच के लिए खर्च 40 से 50 रुपये है। सामान्य पैथोलाजी में भी यह जांच हो सकती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट की संख्या के आधार पर अनुपात निकाला जाता है। देखा गया है कि एनएलआर बढ़ा है तो मरीजों में बीमारी की गंभीरता बढ़ सकती है। इसे भांपकर एहतियात बरत के परेशानी को कम करने की योजना पर काम किया जा सकता है। इस जांच के लिए केवल दो मिली रक्त की जरूरत होती है।
इंटरनेशनल इम्यूनो फार्माकोलाजी जर्नल के शोध रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने द डायग्नोस्टिक एंड प्रिडेक्टिव रोल आफ एनएलआर (न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट रेशियो), पीएलआर (प्लेटलेट्स लिफ्मोसाइट रेशियो) और लिम्फोसाइट मोनासाइट रेशियो विषय पर शोध 93 कोरोना संक्रमित मरीजों पर किया। इनमें 83.8 फीसद में बुखार और 70.9 कफ सामान्य लक्षण पाया गया। देखा कि जिन मरीजों में एनएलआर बढ़ा था उनमें बीमारी की गंभीरता अधिक हुई। उनमें सांस लेने में परेशानी के अलावा दूसरी परेशानी दूसरे मरीजों के मुकाबले ज्यादा देखी गई। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका उम्र से भी संबंध देखा गया, जिनकी उम्र ज्यादा थी, उनमें यह बढ़ा हुआ था। इस बायोमार्कर की दक्षता 88 फीसद तक बताई गई है।
छोटे अस्पताल में भी संभव होगी यह जांच
संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रुमैटोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल और एसोसिएशन ऑफ पैथोलाजिस्ट एंड माइक्रोबायलोजिस्ट के अध्यक्ष डॉ. पीके गुप्ता कहते है कि यह बायोमार्कर उन मरीजों के लिए कारगर साबित होगा, जो कि जिलों और सामान्य अस्पताल में भर्ती हैं, उनमें स्थित की गंभीरता का अंदाजा लगा कर योजना बनाने में मदद मिलेगी।
क्या है एनएलआर
न्यूट्रोफिल की कुल संख्या को लिम्फोसाइट की कुल संख्या से भाग दिया जाता है, जो परिणाम आता है उसे एनएलआर कहते हैं।