पंतनगर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. आर के श्रीवास्तव ने बताया कि कार्बन एवं अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कर इंसान पृथ्वी के मौसम का मिजाज बिगाड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते हर आने वाला वर्ष पिछले वर्ष से अधिक गर्म होता जा रहा है।
2013 के आकलन में आइपीसीसी ने बताया था कि 21वीं सदी के अंत तक धरती का तापमान 1850 के सापेक्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है। विश्व मौसम संगठन के अनुसार यदि वार्मिंग की दर ऐसी रही तो सदी के अंत तक धरती का तापमान तीन से पांच डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि धरती के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित रखना दुनिया के लिए बहुत जरूरी है।
डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि इस वर्ष पृथ्वी दिवस का थीम क्लाइमेट एक्शन रखा गया है। पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का मनुष्य अंधाधुंध उपयोग कर पारिस्थितिक तंत्र से छेड़छाड़़ कर रहा है, जो पर्यावरण के विनाश का संकेत है।
सदियों से किए जा रहे अत्याचार का बदला पृथ्वी अब ग्लोबल वार्मिंग के जरिये ले रही है। इससे निश्चित ही आने वाली पीढ़ी जहरीले वातावरण एवं नई-नई बीमारियों के साथ जीवन जीने को बाध्य होगी। यदि पृथ्वी के तापमान बढ़ने का यही हाल रहा तो आने वाले समय में धरती पर रहना भी दूभर हो जाएगा। इस बदलाव से धरती का प्राकृतिक क्रियाकलाप तेजी से प्रभावित होगा।
दुनिया के विकसित देशों में जब तक औद्योगिक विकास प्रक्रिया चरम पर थी, तब तक उन्होंने धरती के वातावरण और लगातार बढ़ रही गर्माहट पर चुप्पी साधे रखी। लेकिन जैसे ही विकास की बयार बहने लगी, उन्होंने पर्यावरण की खराब होती हालत पर शोर मचाना शुरू कर दिया। हानिकारक गैसों को नियंत्रित करने की ठोस कवायद विकसित देशों को ही करनी चाहिए।